भारतीय नागरिकता (संशोधन) कानून, जिसे CAA के नाम से जाना जाता है, ने देशभर में विवाद और चर्चा का विषय बना दिया है। CAA के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी, बशर्ते वे दिसंबर 2014 तक भारत आ चुके हों।
इस कानून के लागू होने के बाद, अब NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) की बारी है, जिसका उद्देश्य देश में अवैध प्रवासियों की पहचान करना है। इसके लागू होने से नागरिकता के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया में बदलाव आएगा और इससे जुड़े विवादों की संभावना है।
NRC, यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स, भारतीय नागरिकों का एक रजिस्टर है जिसे 2003-2004 में संशोधित नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार बनाया गया है।1 इसका मुख्य उद्देश्य देश में अवैध प्रवासियों की पहचान करना है।
असम में, जो एक सीमावर्ती राज्य है, NRC को 1951 में जनगणना के आधार पर बनाया गया था और हाल ही में 31 अगस्त 2019 को इसे अद्यतन किया गया। इस अद्यतन सूची में 3.3 करोड़ आबादी में से 3.1 करोड़ नाम शामिल थे, जिसमें लगभग 20 लाख आवेदक शामिल नहीं थे।
भारत सरकार ने असम में NRC को अद्यतन करने की प्रक्रिया पर सहमति व्यक्त की थी, और सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस प्रक्रिया का निर्देशन और निगरानी शुरू की। इस प्रक्रिया के तहत, नागरिकों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए विभिन्न दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं, जैसे कि जन्म प्रमाणपत्र, शिक्षण प्रमाणपत्र, जमीन के दस्तावेज, राज्य जारी किया गया स्थायी निवास प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, आधार, वोटरकार्ड, पैनकार्ड आदि।
यह प्रक्रिया विवादास्पद रही है, क्योंकि कई वैध नागरिकों को सूची से बाहर रखा गया था, जबकि कुछ अवैध प्रवासी शामिल हो गए थे। इसके अलावा, भारतीय जनता पार्टी ने पूरे भारत में NRC को लागू करने का वादा किया है, लेकिन असम NRC उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया।