बीते दिन केंद्र सरकार ने CAA को लागू कर दिया है। फिलहाल यह नॉर्थ-ईस्ट के सात राज्यों को छोड़कर पूरे देश में लागू हो गया है। इसी के साथ एक नई बहस भी छिड़ गई है। 2019 में जब सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) को संसद से पारित किया गया था, तब इसके खिलाफ जबरदस्त विरोध देखने को मिला था।
इसी विरोध के कारण सरकार ने 5 वर्षों तक इस मामले को ज्यादा हवा नहीं दी। लेकिन बीते दिन यानी 11 मार्च, 2024 को सरकार ने इसे लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। अभी कुछ समय बाद लोकसभा चुनाव होने है। जिस कारण इसे BJP का मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है।
आखिर CAA क्या है?
CAA एक नागरिकता से जुड़ा हुआ कानून है। जिसके तहत भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। सीएए लागू होने के बाद अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों के लिए भारत की नागरिकता लेना आसान हो जाएगा।
हालांकि जो लोग 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए थे, उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी। अब उन्हें भारत की नागरिकता बिना पासपोर्ट और वीजा के मिल पाएगी। इसके लिए सबसे पहले पोर्टल पर आवेदन करना होगा। फिर गहरी जांच के बाद ही भारत की नागरिकता मिलेगी।
क्या CAA भारतीय मुसलमानों के लिए खतरा है?
सीएए की अवधारणा काफी समय से चल रही थी। जिसे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद से पारित कर दिया गया। एक्ट बनाने के पीछे केंद्र सरकार का तर्क है कि आजादी के बाद हुए बँटवारे से जो हालत बने थे, यह उसका एक समाधान है। क्योंकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया गया था।
अब इसके दो मत सामने निकल कर आ रहे हैं। सरकार अपने रुख को स्पष्ट करते हुए कह रही है कि यह मुस्लिम बहुल देशों के अल्पसंख्यकों के लिए न्याय है। वहीं विपक्ष इसे धर्म की राजनीति कहकर सीएए को मुस्लिमों के खिलाफ बता रहा है। विपक्ष और मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि इससे मुस्लिम समुदाय के लोगों को टार्गेट किया जा रहा है। इससे भविष्य में उनको अवैध बताकर उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी।
वहीं केंद्र सरकार ने इस भ्रम को दूर करने के लिए स्पष्टीकरण जारी किया है। सरकार ने देश में रहने वाले लोगों को आश्वासन दिया है कि भारत के अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय को डरने की जरूरत नहीं है। इस एक्ट से किसी की नागरिकता नहीं छीनी जा रही है। इस कानून से भारतीय मुसलमानों को कोई खतरा नहीं है।
सरकार के अनुसार मुसलमानों का कोई अधिकार नहीं छीना जाएगा। वहीं सरकार ने साफ किया कि यह नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता लेने का नहीं।
औवेसी ने क्या कहा?
सीएए को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष ने तीखी प्रतिक्रीया दी है। उन्होनें सरकार पर कई सवाल दागे हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकता धर्म या राष्ट्रियता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने अपनी X (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट पर अपनी राय दी है।
AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले चुनाव का मौसम आएगा फिर CAA के नियम आएंगे। सीएए पर हमारी आपत्तियां जस की तस हैं। CAA विभाजनकारी है और गोडसे की सोच पर आधारित है, जो मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाहता है। सताए गए किसी भी व्यक्ति को शरण दें, लेकिन नागरिकता धर्म या राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। सरकार को बताना चाहिए कि उसने इन नियमों को पांच साल तक क्यों लंबित रखा और अब इसे क्यों लागू कर रही है। NPR-NRC के साथ CAA का उद्देश्य केवल मुसलमानों को टारगेट करना है, इसका कोई अन्य उद्देश्य नहीं है। CAA, NPR, NRC का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे भारतीयों के पास फिर से इसका विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।”
क्या CAA से नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को होगा नुकसान?
सरकार का कहना है कि भारत में रहने वाले किसी भी अलपसंख्यक को इस कानून से डरने की जरूरत नहीं है। यह कानून तो सिर्फ तीन मुस्लिम बहुल देशों में प्रताड़ित किए गए अलपसंख्यकों को नागरिकता देने का है। इससे किसी की भी नागरिकता नहीं जाएगी।
सरकार अपने रुख को साफ करते हुए कह रही है कि जिन अलपसंख्यकों के साथ बँटवारे के समय अन्याय हुआ था। यह कानून उनके साथ न्याय करेगा। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया जाता है। रोहिंग्या बांग्लादेश से घुसपैठ कर भारत आते हैं, इसलिए उन्हें इस कानून में शामिल नहीं किया गया है।
सरकार ने साफ किया कि CAA कानून से सिक्किम और नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को कोई नुकसान नहीं है। नॉर्थ-ईस्ट में आर्टिकल 371 नहीं हटाया जा रहा है। साथ ही असम समझौते का पूरा पालन किया जाएगा।